सरयूपारीण ब्राह्मण सभा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना पंडित रविशंकर दुबे जी ( भगीरथी मन्दिर नयापारा रायपुर ) के नेतृत्व में 26 जुलाई 1981को हुई। 27 मार्च1984 सरयूपारिणब्राह्मण सभा का पंजीयन, (क्रमांक 13579) रजिस्टार फर्म एंड सोसायटी कार्यालय भोपाल मध्यप्रदेश में हुआ। यह एक प्रादेशिक संगठन है,जिस का कार्य छेत्र पूर्व में सम्पूर्ण मध्यप्रदेश था,परंतु छत्तीसगढ़ बनने के बाद अब कार्य छेत्र सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ हो गया है... Read More
सरयूपारीण ब्राह्मण सभा समाज की सामाजिक गतिविधिया हमारा समाज भी विविधताओं के बीच एकता का समावेश कर रहा है। समय की आवश्कता के अनुरूप हम सभी को एकजुट होकर समाज को नई दिशा, नई उंचाई की ओर अग्रसर करना है।
ब्राह्मणों में कई जातियां है।इससे मूल कार्य व स्थान का पता चलता है
सम्यग व्यवहार सिद्धि के लिए प्रतिपादित की। अर्थात् जिस वंश में जो आदि पुरुष परम कीर्ति वाला प्रतापी, सिद्ध पुरुष, तपस्वी ऋषि, मनीषी, कुलप्रवर्त्तक आचार्य हुआ हो उसके नाम से ही गोत्र का नामकरण हो गया, जैसे- मनुष्यों को अपनी पहचान बताने के लिए अपने नाम के साथ पिता, पितामह प्रतितामह आदि का नाम बताकर पूर्ण परिचय देता है। इस कारण आदि काल से आज तक ब्राह्मण जाति के लोग अपने आपको वशिष्ठ, भारद्वाज, भार्गव , गौतम, अत्रि कश्यपादि की सन्तान बताकर गौरव का अनुभव करते हैं। यहाँ यह भी लिख देना उचित है कि प्रत्येक गोत्र के साथ प्रतिष्ठा के नाम होते थे। जो जिस ग्राम व स्थान में बसे व जिसकी जैसी योग्यता होती थी उसी प्रतिष्ठा से उसे पुकारा जाता था। जैसे- चतुर्वेदी, द्विवेदी, त्रिवेदी, पाठक, शुक्ल, पांडे, दिक्षित, उपाध्याय, वाजपेयी एवं अग्निहोत्री आदि। इनमें वेद पढ़ने से द्विवेदी, त्रिवेदी आदि कहाये, अध्यापक होने से उपाध्याय पाठक और भट्टाचार्य कहाये। यज्ञादि कर्मानुष्ठान करने से वाजपेयी, अग्निहोत्री आरि दिक्षित कहाये श्रोत्रीय और स्मृति कर्मानुष्ठान करने से मिश्र. पुरोहित और शुद्ध निर्मल गुण-कर्मों के अनुष्ठान से शुक्ल कहाये।
संस्था के निम्न्लिखित उद्देश्य...
छत्तीसगढ़ में ब्राह्मण समाज के विषय में बहुत पुराने समय से जानकारी मिलती है। छत्तीसगढ़ में राज करने वाले प्राचीन राजवंशो के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उस समय ब्राह्मणों को समाज में विशेष सम्मान प्राप्त था तथा ब्राह्मणों का वर्गीकरण सामान्यतः वेदों की साखाओं के अनुसार होता और ब्राह्मणों की उपजातियाँ नहीं बनी थी । महारानी वास्टा जिन्होंने सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर विकसित किया था के अभिलेखों में ब्राह्मणों का वर्गीकरण ऋगवेदी, यर्जुवेदी, सामवेदी ब्राह्मणों के रूप में किया गया है। इसके पश्चात ब्राह्मणों का उल्लेख उनकी साखा और गोत्र के अनुसार किया जाता था। उस काल में ब्राह्मणों का आदर के प्रमुख कारण उनका ज्ञान और आचरण था। सामान्यतः राजा उन्ही ब्राह्मणों को दान दिया करता था जो विशुद्ध कुल और श्रुत के होते थे। इसका तात्पर्य यह है कि ब्राह्मणों का कुल भी शुद्ध होना चाहिए और उन्हे ज्ञान के क्षेत्र में भी उपयुक्त होना चाहिए ।
See Detailsपरिवर्तन प्रकृति का नियम है समय के साथ हो रहे परिवर्तनों में खुद को ढालना हमारी जिम्मेदारी है। इन परिवर्तनों के बीच अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा हम सभी का दायित्व है।